कविता संग्रह >> छूना बस मन छूना बस मनअवधेश सिंह
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दुर्लभ होते हुए प्रेम को सम्भव करते हुए...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अवधेश जी की इन कविताओ की ताकत उनके सीधे-सच्चेपन में है। न ये कृत्रिम हैं और न ही सजावटी। इतनी पकी भी नहीं है कि उनमें से कच्चेपन की एकदम ताजा खुशबू गायब हो। प्यार की मासूमियत और ललक यहां बराबर हिलोरें लेती हैं-"तुम्हें देख लगा/गजलों/ की मैंने देखो/पहली किताब" कवि की आस्था एक ऐसे प्यार में है जो किसी भी स्थिति में शिकायत के दायरे में नहीं आता । सबूत के लिए स्वभाव कविता देखी जा सकती है जिसमें प्रेमिका के द्धारा प्रेम को शब्दों में बॉंधने का कारण उसका नारी स्वभाव खोज लिया जाता है। अच्छा यह भी है कि कवि की निगाह ने प्रेम को उसके एकांगी नहीं बल्कि विविध रूपों में पकड़ा है। इसीलिए प्रेम में शर्त, शंका आदि की उपस्थिति क्रो स्वीकार करते हुए नकारा गया है । प्यार को अपनेपन या अपने की खोज का पर्याय माना है। अत: असफल प्रेम काँटों का जंगल दिखता है। सच तो यह है कि यहां टूटकर प्यार करने की विविध अभिव्यक्तियाँ हैं और उस प्यार के सपने भी हैं। यहाँ कुछ कविताएँ ऐसी भी हैं जो प्रेम को उसके विस्तृत रूप में भी दिखाती हैं। प्रेम जब जिदगी बन जाता है तो जिदगी का रहस्य भी खुद ब खुद खुलने लगता है।
कवि के हाथ तव ये पंक्तियां लगती है - तू बुद्ध है तू कबीर है / तू तुलसी है नानक हैं / पर तू तो है / कोने से मुँह छुपाए बैठा / एक बच्चा उदास/ हों, जिसकी मुस्कुराहट में / मिलता है त्तेरा अहसास - ये पंक्तियाँ जिदगी तेरा एहसास कविता से हैं। प्रेम-खत भी कवि की विशिष्ट कविता कहीं जा सकती है और विश्वास है कि पाठक इसे सराहना के योग्य पाएँगे । कवि के पास सहज और सक्षम भाषा है। लयात्मकता की पहचान है। इस संग्रह में - तुम चाद नहीं , प्यार की अनुभूतियाँ, अनुबंघ, प्रेम-खत और जिदगी तेरा अहसास, बात, दरख्त का दर्द - जैसी अनेक कविताएं है जो कवि के उज्जवल भविष्य की अनुगूँज कहीं जा सकती हैं ।
लिखना था प्यार
शब्द खो गए
कहना था प्यार
बोल होंठों में
कैद हो गए।
आँखों ने बस
जताया
एक विश्वास
लो हम
तुंम्हारे हो गए।
अनास्था की
पट गयीं दरारें
बंदिशों की
गिर गयी दीवारें।
जैसे पिंजरे का
बन्द परिन्दा हुआ आजाद
भरी नयी उड़ान।
होंठों में कैद
प्याऱ का
कोमल अहसास
चढ़ा परवान ।
कवि के हाथ तव ये पंक्तियां लगती है - तू बुद्ध है तू कबीर है / तू तुलसी है नानक हैं / पर तू तो है / कोने से मुँह छुपाए बैठा / एक बच्चा उदास/ हों, जिसकी मुस्कुराहट में / मिलता है त्तेरा अहसास - ये पंक्तियाँ जिदगी तेरा एहसास कविता से हैं। प्रेम-खत भी कवि की विशिष्ट कविता कहीं जा सकती है और विश्वास है कि पाठक इसे सराहना के योग्य पाएँगे । कवि के पास सहज और सक्षम भाषा है। लयात्मकता की पहचान है। इस संग्रह में - तुम चाद नहीं , प्यार की अनुभूतियाँ, अनुबंघ, प्रेम-खत और जिदगी तेरा अहसास, बात, दरख्त का दर्द - जैसी अनेक कविताएं है जो कवि के उज्जवल भविष्य की अनुगूँज कहीं जा सकती हैं ।
प्यार का अहसास
लिखना था प्यार
शब्द खो गए
कहना था प्यार
बोल होंठों में
कैद हो गए।
आँखों ने बस
जताया
एक विश्वास
लो हम
तुंम्हारे हो गए।
अनास्था की
पट गयीं दरारें
बंदिशों की
गिर गयी दीवारें।
जैसे पिंजरे का
बन्द परिन्दा हुआ आजाद
भरी नयी उड़ान।
होंठों में कैद
प्याऱ का
कोमल अहसास
चढ़ा परवान ।
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